राजस्थान में 1800 करोड़ की ठगी: हाल ही में सामने आई 1800 करोड़ रुपये की ऑनलाइन ठगी (fraud) ने न सिर्फ राज्य बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया है। इस संगठित ठगी का सबसे बड़ा शिकार बने हैं कॉलेज के छात्र—वो युवा, जो अपने भविष्य के सपनों को लेकर पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन एक झूठे लालच में फँसकर सब कुछ गंवा बैठे।
कैसे शुरू हुई ठगी की यह चेन?
यह मामला तब उजागर हुआ जब जयपुर, कोटा, अजमेर, और उदयपुर जैसे शहरों के कई कॉलेज छात्र अचानक आर्थिक संकट में घिर गए। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स के ज़रिए युवाओं को ‘वर्क फ्रॉम होम’, ‘इंवेस्टमेंट’ और ‘फास्ट मनी’ (जल्दी पैसे कमाने) के नाम पर आकर्षित किया गया।
छात्रों से कहा गया कि वे मामूली रकम निवेश करें और बदले में मोटा मुनाफा (profit) पाएँ। शुरुआत में कुछ को छोटे-छोटे रिटर्न भी मिले, जिससे विश्वास और बढ़ा। लेकिन कुछ ही महीनों में लाखों की रकम डूब गई।
असली घटनाएँ, असली दर्द
कोटा के इंजीनियरिंग छात्र ऋषभ ने बताया, “मुझे लगा था कि ऑनलाइन पार्ट-टाइम जॉब से जेब खर्च निकल जाएगा। लेकिन जब तक समझ आया, 85,000 रुपये गंवा चुका था। घरवालों को बताने की हिम्मत नहीं हुई।”
ऐसी ही कहानी उदयपुर की नेहा की है, जिसने अपनी पढ़ाई के लिए जमा पैसे एक ऐप में लगा दिए, और अब वह पूरी तरह खाली हाथ है।
इन युवाओं के लिए यह सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि मानसिक आघात (trauma) भी है। कई छात्र डिप्रेशन (अवसाद) में चले गए हैं, तो कुछ ने पढ़ाई छोड़ने तक की सोच ली।
कैसे फँसाया गया छात्रों को?
- सोशल मीडिया पर फर्जी प्रोफाइल: आकर्षक जॉब ऑफर और निवेश के झूठे वादे
- फर्जी वेबसाइट और ऐप: असली कंपनियों की नकल कर बनाई गईं साइट्स
- रेफरल स्कीम: एक छात्र को दूसरे को जोड़ने पर कमीशन का लालच
- फर्जी कॉल सेंटर: प्रोफेशनल भाषा में बात कर भरोसा जीतना
पुलिस और प्रशासन की भूमिका
जैसे-जैसे शिकायतें बढ़ीं, पुलिस ने साइबर सेल (Cyber Cell) के ज़रिए जांच शुरू की। शुरुआती जांच में सामने आया कि यह गिरोह सिर्फ राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्यों में फैला है। कई फर्जी बैंक अकाउंट, डिजिटल वॉलेट और विदेशी नंबरों का इस्तेमाल हुआ।
राजस्थान पुलिस के एक अधिकारी ने बताया, “हमने अब तक 30 से ज़्यादा संदिग्धों को हिरासत में लिया है। कई करोड़ की रकम जब्त की गई है, लेकिन असली मास्टरमाइंड अब भी फरार है।”
छात्रों ने DGP और वित्तमंत्री को लिखा पत्र
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जयपुर के सांसद डॉ. रमेश शर्मा ने राज्य के DGP (Director General of Police) और वित्तमंत्री को पत्र लिखा है। उन्होंने मांग की है कि—
- साइबर अपराध की जांच तेज़ की जाए
- छात्रों को जागरूक करने के लिए कैंपेन चलाया जाए
- बैंक और डिजिटल पेमेंट कंपनियों को सख्ती से मॉनिटर किया जाए
- जिन छात्रों की रकम डूबी है, उन्हें राहत देने के उपाय किए जाएँ
डॉ. शर्मा ने पत्र में लिखा, “हमारे युवाओं का भविष्य दांव पर है। यह सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं, सामाजिक संकट है। सरकार को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।”
इस ठगी ने न सिर्फ छात्रों, बल्कि उनके परिवारों को भी गहरे सदमे में डाल दिया है। कई माता-पिता ने बच्चों को पढ़ाई के लिए जोड़े पैसे गंवा दिए।
जयपुर की गृहिणी ममता देवी कहती हैं, “हमने बेटी की फीस के लिए पैसे जमा किए थे। अब समझ नहीं आ रहा, कहाँ जाएँ। पुलिस से भी उम्मीद है, लेकिन डर है कि पैसे वापस मिलेंगे या नहीं।”
साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि—
- कोई भी ऑफर जो असामान्य रूप से आकर्षक लगे, उससे सावधान रहें
- अज्ञात ऐप या वेबसाइट पर कभी भी पैसे न डालें
- अपने बैंक डिटेल्स और OTP किसी के साथ साझा न करें
- अगर ठगी का शिकार हुए हैं, तो तुरंत साइबर सेल में शिकायत करें
राज्य सरकार ने भरोसा दिलाया है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। पुलिस की टीमें लगातार छापेमारी कर रही हैं।
लेकिन असली ज़रूरत समाज में जागरूकता (awareness) की है। कॉलेजों में साइबर सुरक्षा पर सेमिनार, स्कूलों में डिजिटल लिटरेसी (digital literacy) और परिवारों में खुली बातचीत—यही इस संकट से बाहर निकलने का रास्ता है।
राजस्थान की 1800 करोड़ की यह ठगी सिर्फ एक आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि युवा सपनों, भरोसे और भविष्य पर हमला है।
अब वक्त आ गया है कि समाज, सरकार और प्रशासन—तीनों मिलकर ऐसे अपराधों के खिलाफ एकजुट हों, ताकि हमारे युवा सुरक्षित और जागरूक रहें।
आखिरकार, एक जागरूक नागरिक ही सबसे बड़ी ताकत है—और यही इस कहानी का सबसे बड़ा सबक भी।















