Good News: जीरे के बाद ईसबगुल के किसानों की हुई मौज, मिल रहा सबसे अधिक भाव

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Jambhsar Media News Digital Desk नई दिल्‍ली: मौसम की उपयुक्तता और अच्छे मुनाफे के दम पर ईसबगोल की खेती ने श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र में अपने पैर जमाने शुरू कर दिया है। पिछले दो सालों में किसानों का ईसबगोल की खेती की तरफ रुझान बढ़ा है। जानकारी के अनुसार औषधीय गुणों से भरपूर ईसबगोल के लिए श्रीडूंगरगढ़ का मौसम उपयुक्त है। कम पानी व कम लागत में ईसबगोल की खेती कर मुनाफा कमाया जा सकता है। अच्छी उपज के लिए नवम्बर के प्रथम पखवाड़े तक गेहूं, जौ, सरसों आदि की बुआई से 15 दिन पहले ईसबगोल की बुआई उचित रहती है। वहीं बीज के जमाव के लिए पर्याप्त नमी जरूरी होती है

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कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार ईसबगोल के पौधे में बीमारी कम लगती है। वहीं पानी भी कम चाहिए। भाव अच्छे मिलने के साथ ही फसल को तैयार करने में मेहनत भी कम होती है। आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में इसकी विशेष मांग होती है। इसकी पैदावार एक बीघा में दो क्विंटल तक हो जाती है। फसल चार-पांच माह में तैयार हो जाती है।

श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र की बलुई मिट्टी में ईसबगोल की खेती की शुरुआत पिछले दो तीन सालों से हुई है और हर साल इसका रकबा बढ़ता जा रहा है। इस समय ईसबगोल के भाव 9000 से 10000 रुपए प्रति क्विंटल है। ऐसे में एक बीघा में 15 से 20 हजार रुपए का लाभ किसान प्राप्त कर लेते हैं। गत वर्ष इसके भाव 14 हजार रुपए क्विंटल तक पहुंच गए थे। इस साल ईसबगोल के रकबे में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है।

उपखंड क्षेत्र में वर्ष 2022-23 में इसका बिजान 1850 हेक्टेयर बीघा में था, जो इस वर्ष करीब 3670 हेक्टेयर हुआ है। चने की घटती पैदावार एवं सरसों की फसल में बीमारियां व खराबे को देखते हुए किसानों ने इस फसल की तरफ रुख किया है। बिग्गा गांव के किसान भागीरथराम तावणियां ने बताया कि उसने पहली बार अपने खेत में 35 बीघा जमीन पर ईसबगोल की खेती की है। इस फसल का आसानी से बिजान के साथ ही कम पानी, कम मेहनत और कम लागत में फसल तैयार हो जाती है। वहीं पिछले दो सालों से बाजार भाव भी अच्छे मिल रहे हैं।

किसान प्रमाणित बीज और खेती के संबंध में कृषि विशेषज्ञों से समय-समय पर जानकारी लेकर पैदावार लें, तो पैदावार अच्छी गुणवत्ता के साथ अधिक भी होगी। अमूमन किसान प्रमाणित बीज नहीं लेकर निजी कंपनियों का बना टीएल सीड काम में लेते हैं, जिससे पैदावार का औसत कम बैठता है। हालांकि इस फसल में कुछ सावधानी भी बरतनी पड़ती है। पकाव के समय वर्षा हो जाए, तो बीज झड़ जाता है तथा छिलका फूल जाता है। इससे गुणवत्ता व पैदावार दोनों पर असर पड़ता है।

भाव अच्छे मिलने व पानी की कमी के चलते श्रीडूंगरगढ़ तहसील के किसानों का ईसबगोल की खेती की तरफ रुझान बढ़ रहा है। इस फसल में बीमारी भी कम लगती है। यदि किसान अन्य व्यापारिक फसलों की तरह कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से इसकी खेती करे, तो कम लागत लगाकर अधिक आमद कर सकते हैं।

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Rameshwari Bishnoi

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