Jambhsar Media Digital Desk : भेल ही फोन पे और गूगल पे का इस्तेमाल तेजी से हो रहा है। लेकिन आज भी लोग चेक के जरिए पेमेंट करना ज्यादा सेफ मानते हैं। वहीं, ज्यादातर लोगों को चेक से जुड़े नियमों के बारे में जानकारी नहीं होती है जिसके कारण वह बड़ी मुसीबत में फंस जाते हैं। मान लें, अगर आपको किस ने चेक काटकर दिया है और आप उसको कैश करवाने के लिए बैक जाते हैं। लेकिन चेक जारी करने वाले अकाउंट में पर्याप्त पैसा नहीं है तो चेक बाउंस हो जाता है। और चेक बाउंस (Check Bounce) होने पर जुर्माने के साथ सजा का भी प्रावधान है। आइए नीचे खबर में जानते हैं-
आज के समय में ऑनलाइन ट्रांजेक्शन (online transaction) का दौर तेजी से बढ़ रहा है, आज आप फोन पे, गूगल पे या UPI के जरिए घर बैठे मिनटों में कहीं भी पैसे ट्रांसफर कर सकते हैं । लेकिन वहीं, कुछ लोग आज भी ऐसे हैं, जो चेक से पेमेंट (cheque payment) करना पसंद करते हैं और बड़ी पेमेंट चेक के जरिए करना सुरक्षित भी मानते हैं। चेक भरते समय कई प्रोसेस से गुजरना पड़ता है। अगर आप एक भी गलती कर देते हैं तो चेक बाउंस हो सकता है और चेक बाउंस (Check Bounce) होने पर आपको जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। कुछ स्थितियों में जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है। अगर आप भी चेकबुक का इस्तेमाल करते हैं और कभी आपका चेक बाउंस न हो जाए, तो आपके लिए इसके नियम के बारे में जानना जरूरी है… तो चलिए जानते हैं।
कई कारणों से चेक बाउंस हो जाता है जैसे अकाउंट में बैलेंस न होना या कम होना, सिग्नेचर बदलना, शब्द लिखने में गलती, अकाउंट नंबर में गलती, ओवर राइटिंग आदि। इसके अलावा चेक की समय सीमा समाप्त होना, चेककर्ता का अकाउंट बंद होना, चेक पर कंपनी की मुहर न होना, ओवरड्राफ्ट की लिमिट को पार करना आदि वजहों से भी चेक बाउंस हो सकता है। अगर किसी स्थिति में चेक बाउंस हो जाता है, तो बैंक इसका फाइन आपके खाते से ही काट लेती है। चेक बाउंस होने पर देनदार को इसकी सूचना बैंक को देनी होती है, जिसके बाद उस व्यक्ति को एक महीने के अंदर भुगताना करना पड़ता है।
जब चेक बाउंस होता है तो उस बैंक की तरफ से एक परची दी जाती है जिसे चेक रिटर्न मेमो कहते हैं। यह परची पेयी के नाम होती है जिसने चेक जारी किया है। इस परची पर चेक बाउंस होने की वजह लिखी होती है। इसके बाद चेक होल्डर या पेयी के सामने 3 महीने का टाइम होता है जिसमें उसे दूसरी बार चेक जमा करना होता है। अगर दुबारा चेक बाउंस हो जाए तो पेयी के सामने चेक जारी करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार होता है।
इसके तहत चेक जारी करने वाले को नोटिस भेजा जाता है और 15 दिन के अंदर पैसा देने को कहा जाता है। अगर 15 दिन में पैसा मिल जाए तो मामला सुलझ जाता है। अगर ऐसा नहीं होता तो यह मामला कानूनी प्रक्रिया में ले जा सकते हैं। इसके लिए चेक देने वाले के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत सिविल कोर्ट में केस दर्ज कर सकते हैं। इसमें आरोपी को 2 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। जुर्माने की राशि चेक की राशि से दुगनी हो सकती है।
चेक बाउंस होने पर इसका केस आईपीसी की धारा 420 के तहत भी कर सकते हैं। यानी कि चेक बाउंस का मामला सिविल के अलावा क्रिमिनल कोर्ट में भी कर सकते हैं। आईपीसी की धारा 420 के तहत यह साबित करना होता है कि चेक जारी करना और अकाउंट में पैसे नहीं रखना एक तरह से बेइमानी के इरादे से किया गया। अगर यह केस साबित हो जाए तो आरोपी को 7 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है। सिविल केस में हालांकि एक सुविधा यह मिलती है कि कोर्ट चाहे तो पीड़ित पक्ष को शुरू में कुछ पैसे दिलवा सकता है या इसका निर्देश दे सकता है।
चेक बाउंस होने पर बैंक अपने ग्राहक से जुर्माना वसूलते हैं। ये जुर्माना वजहों के हिसाब से अलग अलग हो सकता है। ये चार्जेस अलग-अलग बैंकों के अलग-अलग हैं। ये जुर्माना 150 रुपये से लेकर 750 या 800 रुपये तक हो सकता है। उसे 2 साल तक की जेल या चेक में भरी राशि का दोगुना जुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है। हालांकि ये उसी स्थिति में होता है जब चेक देने वाले के अकाउंट में पर्याप्त बैलेंस न हो और बैंक चेक को डिसऑनर कर दे।
भारत में चेक बाउंस होने को एक अपराध माना जाता है। नियमों के अनुसार, तो अगर कोई चेक बाउंस होने के बाद एक महीने के अंदर देनदार चेक का भुगतान नहीं कर पाता, तो फिर उसके नाम लीगल नोटिस जारी हो सकता है। फिर इस नोटिस का जवाब 15 दिनों के अंदर नहीं मिलता, तो ऐसे व्यक्ति के खिलाफ ‘Negotiable Instrument Act 1881’ के सेक्शन 138 के अंतर्गत केस तक किया जा सकता है। देनदार पर केस दर्ज होने के बाद उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है या फिर दो साल की जेल हो सकती है या दोनों का प्रावधान है।