Jambhsar Media Digital Desk : देश को चलाने के लिए सरकार अकेले फैसला नहीं लेती है। हर सेक्टर के लिए अलग अलग विभाग बनाए गए हैं और इसी तरह पैसों से जुड़े मामलों पर आरबीआई फैसला लेता है। लेकिन नोट छापने का फैसला अकेले आरबीआई का नहीं होता है। बता दें कि देश में एक साल में कितने नोट छापे जाने हैं इसका प्रोसेस दो स्टेज में पूरा किया जाता है। पहले स्टेज में रिजर्व बैंक केंद्र सरकार को नोट छापने के लिए एक अर्जी भेजती है। इसके बाद सरकार की तरफ से आरबीआई के ही वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों के एक बोर्ड से इस बारे में विचार विमर्श किया जाता है। इसके बाद रिजर्व बैंक को नोट छापने की मंजूरी दे दी जाती है। आइए नीचे खबर में जानते हैं-
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने 2,000 के नोटों को बंद करने का फैसला किया था। देश में सबसे बड़ी करेंसी ये नोट ही थे। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल भी आ रहा है कि आखिर भारत में नोट छापने का क्या प्रोसेस है। बता दें कि देश में एक साल में कितने नोट छापे जाने हैं इसका आखिरी फैसला भारत सरकार का ही होता है। हालांकि भारत सरकार यह फैसला वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों से चर्चा करके ही लेती है।
नोट छापने के लिए मंजूरी लेने का प्रोसेस दो स्टेज में पूरा किया जाता है। पहले स्टेज में रिजर्व बैंक केंद्र सरकार को नोट छापने के लिए एक अर्जी भेजती है। इसके बाद सरकार की तरफ से आरबीआई के ही वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों के एक बोर्ड से इस बारे में विचार विमर्श किया जाता है। इसके बाद रिजर्व बैंक को नोट छापने की मंजूरी दे दी जाती है।
नोट छापने के मामले में सरकार के पास ही ज्यादा अधिकार हैं। सरकार ही तय करती है कि एक साल में कितने रुपये के कितने नोट छापे जाएंगे। इसका डिजाइन और सुरक्षा मानक भी सरकार ही तय करती है। वहीं रिजर्व बैंक के पास 10,000 रुपये तक के नोट छापने का अधिकार है। इससे बड़े नोट को छापने के लिए रिजर्व बैंक को सरकार से मंजूरी लेनी होती है।
सरकार और RBI कई मानकों को ध्यान में रखकर नोट छापने का फैसला करते हैं। इसमें जीडीपी, विकास दर और राजकोषीय घाटे को देखा जाता है। इसी के आधार पर नोटों की छपाई की जाती है। साल 1956 में मिनिमम रिजर्व सिस्टम की शुरुआत की गई थी,
इसी के तहत रिजर्व बैंक को नोट छापने के लिए अपने पास हमेशा 200 करोड़ का रिजर्व रखना ही होता है। इस रिजर्व में 115 करोड़ का सोना और 85 करोड़ रुपये की फॉरेन करेंसी होनी चाहिए। ऐसा इसलिए किया जाता है कि किसी भी हालात में रिजर्व बैंक को डिफॉल्ड ना घोषित करना पड़े।
भारत में नासिक, देवास, मैसूर और सालबनी में नोटों की छपाई होती है। इसके बाद ये नोट बैंकों को बांट दिए जाते हैं। बैंक इन नोटों को अलग अलग तरीके से आम लोगों तक पहुंचाने का काम करते हैं। इसके बाद ये नोट कई सालों तक सर्कुलेशन में रहते हैं। लोगों के पास सर्कुलेट होते होते ये नोट घिसते भी रहते हैं।
लोगों की तरफ से एक बार इनको फिर से बैंकों में ले जाकर जमा किया जाता है। ये बैंक से वापस आरबीआई के पास पहुंचते हैं। जिसके बाद रिजर्व बैंक की तरफ से इनकी स्थिति को देखकर यह तय किया जाता है कि इनको दोबारा से ईश्यू करना है या फिर नष्ट कर देना है।