झालावाड़ स्कूल त्रासदी: 200 करोड़ का बजट – लेकिन 7 मौत रोक नहीं पाए

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झालावाड़ स्कूल त्रासदी :- राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिप्लोदी गांव में हुई इस दिल दहला देने वाली घटना ने एक बार फिर हमारी शिक्षा व्यवस्था की वास्तविकता को उजागर कर दिया है। 25 जुलाई 2025 की वह सुबह, जब 7 मासूम बच्चों की जिंदगी मलबे तले दब गई, सिर्फ एक दुर्घटना नहीं है – यह सरकारी लापरवाही और व्यवस्था की निष्ठुरता की एक दुखद दास्तान है।

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घटना का दिल दहलाने वाला सच

25 जुलाई की सुबह करीब 7:45 बजे जब पिप्लोदी के सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय के बचभा के लिए इकट्ठा हो रहे थे, तभी 31 साल पुरानी इमारत का एक हिस्सा धड़ाम से गिर गया। कक्षा 6 और 7 के लगभग 35 बच्चे मलबे तले दब गए।

मृतकों में सबसे छोटा बच्चा केवल 6 साल का था। पायल (14), प्रियंका (14), हरीश (8), सोना भाई (5), मिथुन (11), कार्तिक (18) और मीना (8) – ये वे नाम हैं जिन्हें भारत की शिक्षा व्यवस्था की बलि चढ़ना पड़ा। 27 अन्य बच्चे घायल हुए, जिनमें से कई की हालत गंभीर थी।

बच्चों की चेतावनी को किया गया नजरअंदाज

सबसे दुखद बात यह है कि बच्चों ने शिक्षकों को पहले ही आगाह कर दिया था। एक आठवीं कक्षा के छात्र का बयान दिल को झकझोर देता है: छत से कंकड़-पत्थर गिर रहे थे। जब बच्चों ने टीचरों को बताया तो उन्होंने डांटा और नाश्ता करते रहे। अगर बच्चों को बाहर निकाल दिया गया होता तो यह हादसा नहीं होता”

शिक्षक उस समय नाश्ते में व्यस्त थे जब बच्चे मदद की गुहार लगा रहे थे। एक छात्र ने बताया: हमने टीचरों से कहा कि छत से कंकड़ गिर रहे हैं। उन्होंने कहा – बैठ जाओ। फिर अचानक पूरी छत गिर गई”

31 साल पुराना भवन, 4 साल से लगातार शिकायतें

यह स्कूल भवन 1994 में बना था और पिछले कई सालों से खतरनाक हालत में था। ग्रामीणों का कहना है कि वे महीनों से शिकायत कर रहे थे लेकिन किसी ने सुनी नहीं। एक अभिभावक बदरीलाल ने कहा: स्कूल भवन कई महीनों से खतरनाक हालत में था। मैंने कई बार टीचरों को चेतावनी दी थी, लेकिन कभी मरम्मत नहीं हुई”

दिलचस्प बात यह है कि जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने कहा कि यह स्कूल संरचनात्मक रूप से असुरक्षित भवनों की सूची में नहीं था। लेकिन SDM बी.एल.मीणा ने दावा किया कि प्रशासन को कभी स्कूल की हालत के बारे में शिकायत नहीं मिली। यह contradiction सिस्टम की वास्तविकता को दर्शाता है।

पैसों की मांग और सरकारी उदासीनता

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि स्कूल की मरम्मत के लिए 4.28 करोड़ रुपए स्वीकृत थे, लेकिन यह राशि राजस्थान के वित्त मंत्रालय की फाइलों में फंसी हुई थी। शिक्षा निदेशक सीताराम जाट ने कहा कि मानसून से पहले जर्जर स्कूलों की मरम्मत के आदेश थे, लेकिन काम पूरा नहीं हुआ

त्रासदी के बाद VIP रोड, बच्चों के लिए नहीं

त्रासदी के तुरंत बाद जो हुआ वह और भी शर्मनाक है। स्कूल तक जाने वाला रास्ता सालों से खराब था, लेकिन मंत्रियों की visit के लिए एक रात में VIP रोड बना दिया गया

“7 बच्चों की मौत हो गई क्योंकि स्कूल गिर रहा था, और प्रशासन सिर्फ VIP कारों के लिए रास्ता बना सकता था?” – एक स्थानीय निवासी का यह सवाल पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।

राजनीतिक बयानबाजी और जमीनी हकीकत

शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने स्वीकार किया कि राज्य में हजारों स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं। उनकी मरम्मत का काम शुरू किया गया है और लगभग 200 करोड़ रुपए खर्च होंगे। लेकिन यह स्वीकारोक्ति ही दिखाती है कि समस्या कितनी व्यापक है।

राहुल गांधी ने कहामीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार ने जर्जर स्कूलों की शिकायतों को नजरअंदाज किया, जिसके कारण इन मासूम बच्चों की जान गई। इनमें से अधिकतर बच्चे बहुजन समाज से थे – क्या BJP सरकार के लिए इनकी जिंदगी की कोई कीमत नहीं?”

शिक्षकों को बनाया बलि का बकरा

घटना के बाद 5 शिक्षकों को suspend कर दिया गया। लेकिन राजस्थान पंचायती राज एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रवक्ता नारायण सिंह सिसोदिया का कहना हैयह सिर्फ शिक्षकों की जिम्मेदारी नहीं है कि भवन जर्जर था। सरकारी इंजीनियर जो भवनों का survey करते हैं, उनसे सवाल किया जाना चाहिए। शिक्षकों को बलि का बकरा बनाया गया है”

सिस्टम की विफलता के संकेत

यह घटना अकेली नहीं है। भारत में स्कूल infrastructure की समस्या बहुत गंभीर है:

  • अधिकतर public schools 30 साल से ज्यादा पुराने हैं
  • Seismic standards के बिना बने हैं
  • Regular maintenance नहीं होती
  • Technical standards (NTC 4595, 4596, 6199) comply नहीं करते

Emergency Response की विफलता

गांव के सरपंच रामप्रसाद लोधा के अनुसार ambulance को आने में 45 मिनट लगे। घायल बच्चों को दोपहिया वाहनों पर अस्पताल ले जाना पड़ा। यह emergency preparedness की कमी को दर्शाता है।

सरपंच ने अपनी JCB machine से rescue operation चलाया और 20 मिनिट में 13 बच्चों को निकाला, जिनमें से 7 critical condition में थे और बाद में उनकी मौत हो गई

व्यवस्था की मौत

यह केवल पिप्लोदी की नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था की मौत है। जब तक infrastructure पर serious attention नहीं दिया जाएगा, ऐसी tragedies होती रहेंगी।

सवाल यह है: क्या हमें और कितने बच्चों की जान का इंतजार करना होगा सिस्टम को जगाने के लिए? झालावाड़ की यह त्रासदी एक wake-up call है – लेकिन क्या हम जागेंगे?

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Beerma Ram is the owner of Jambhsar Media, who has been working in Media field since 2018, covering news of religious, political, social fields, connecting with rural life, living with backward people, educating illiterate people. Creating awareness, serving the poor and serving wildlife through my organization Jambhsar Hitkarini Snsthaan, saving rare animals has always been my goal.

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