Jambhsar Media News Digital Desk नई दिल्ली : अगर कोई ईएमआई डिफॉल्ट करता है तो ऐसे में बैंक या वित्तीय संस्थाएं उसकी प्रॉपर्टी नीलाम कर सकती है। हालांकि इसके लिए कुछ नियम है और बैंक को कुछ प्रोसेस फॉलो करते होते हैं।आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से.
अगर कोई लोन लेता है और उसकी ईएमआई चुकाने में समस्या होती है, तो ऐसे में जिस बैंक से लोन लिया गया है उसके पास लोन की राशि को रिकवर करने के लिए कई अधिकार हैं। अगर कोई ईएमआई डिफॉल्ट करता है तो ऐसे में बैंक या वित्तीय संस्थाएं उसकी प्रॉपर्टी नीलाम कर सकती है। हालांकि इसके लिए कुछ नियम है और बैंक को कुछ प्रोसेस फॉलो करते होते हैं। इसी से जुड़ा एक्ट है SARFAESI Act जो प्रॉपर्टी को नीलाम करने से संबधित है।
SARFAESI Act 2002 में पारित हुआ था। जब लोन लेने वाला ,बकाया पैसा चुकाने में नाकाम होता है तो उस स्थिति में ये बैंक और वित्तीय संस्थाओं को लोन लेने वाले की संपत्ति बेचकर अपना पैसा वसूल करने का अधिकार देता है।
इसके लिए उसे कोर्ट की मंजूरी नहीं लेनी पड़ती है। हालांकि, इस एक्ट में यह बताया गया है कि ऐसा करने के लिए बैंक को किस तरह की प्रक्रिया का पालन करना होगा। इस एक्ट को लेकर किसी तरह का विवाद पैदा होने पर उसकी सुनवाई डेट रिकवरी ट्राइब्यूनल (DRT) में होती है। देश में 39 DRT हैं और पांच डेट रिकवरी एपेलेट ट्राइब्यूनल (DRATs) हैं।
नीलामी की प्रक्रिया तब शुरू होती है जब ग्राहक EMI चुकाना बंद कर देता है। अगर ईएमआई 30 दिन से ज्यादा समय तक नहीं चुकाई जाती है तो इसे ‘स्पेशल मेंशन अकाउंट’ (SMA) 1 कहा जाता है। अगर 60 दिन से ज्यादा समय तक पेमेंट नहीं होता है तो इसे SMA 2 कहा जाता है। 90 दिन से ज्यादा समय तक पेमेंट नहीं होने पर अकाउंट को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) मान लिया जाता है।
जब बैंक किसी अकाउंट को एसएमए या एनपीए में डालता है तो इसकी जानकारी Experian, CRIF और CIBIL जैसी क्रेडिट ब्यूरो कंपनियों को भेज दी जाती है। इससे ग्राहक और लोन के गांरटर के क्रेडिट स्कोर पर खराब असर पड़ सकता है।
अगर ग्राहक किसी ऐसे वजह से ईएमआई नहीं चुका पा रहा है, जिस पर उसका नियंत्रण नहीं हो तो बैंक उसे लोन चुकाने के लिए अतिरिक्त समय दे सकता है। लेकिन, लीगल नोटिस के बाद भी ग्राहक के बैंक का पैसा नहीं चुकाने पर बैंक लोन के लिए गिरवी रखी गई संपत्ति अपने कब्जे में ले सकता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत SARFAESI Act के सेक्शन 13 (2) के तहत की जाती है। उसके बाद सेक्शन 13 (4) के तहत कोर्ट के जरिए संपत्ति कब्जे में ले ली जाती है।