RGHS में पारदर्शिता के लिए राजस्थान सरकार ने लागू की नई व्यवस्था, आमजन को मिलेंगे ये बड़े फायदे:- राजस्थान में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं—कहीं इलाज में देरी, कहीं बिलों में गड़बड़ी, तो कहीं मरीजों को सही जानकारी न मिलना। ऐसे माहौल में राजस्थान सरकार ने RGHS (Rajasthan Government Health Scheme) में पारदर्शिता (transparency) बढ़ाने के लिए एक नई व्यवस्था लागू की है। यह कदम न सिर्फ़ सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए राहत की खबर है, बल्कि पूरे प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और भरोसे को भी मजबूत करेगा।
क्या है RGHS और क्यों जरूरी थी नई व्यवस्था?
RGHS राजस्थान सरकार की वह महत्वाकांक्षी योजना है, जिसके तहत लाखों सरकारी कर्मचारी, पेंशनर्स और उनके परिवारों को कैशलेस इलाज (cashless treatment) की सुविधा मिलती है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में इस योजना में कई तरह की शिकायतें सामने आईं—जैसे इलाज के दौरान अनावश्यक जाँचें, फर्जी बिलिंग, और मरीजों को सही जानकारी न मिलना। कई बार मरीजों को छोटी-छोटी बातों के लिए अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ते थे।
सरकार को लगातार फीडबैक मिल रहा था कि सिस्टम में पारदर्शिता की कमी के कारण न सिर्फ़ सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ रहा है, बल्कि आमजन को भी मानसिक तनाव (mental stress) झेलना पड़ता है। ऐसे में सरकार ने तकनीक और निगरानी (monitoring) को केंद्र में रखते हुए नई व्यवस्था लागू करने का फैसला लिया।
नई व्यवस्था के मुख्य बिंदु
- डिजिटल क्लेम प्रोसेस:
अब इलाज से जुड़े सारे दावे (claims) और बिलिंग पूरी तरह ऑनलाइन होगी। इससे फर्जी बिलिंग, डुप्लीकेट क्लेम और पेपरवर्क में गड़बड़ी की संभावना कम होगी। - रियल टाइम मॉनिटरिंग:
सरकार ने एक नया पोर्टल और मोबाइल ऐप लॉन्च किया है, जिससे मरीज, अस्पताल और प्रशासन—तीनों हर स्टेप पर अपडेट रहेंगे। मरीज अपने इलाज, खर्च और क्लेम की स्थिति कभी भी देख सकते हैं। - ऑटोमेटेड अलर्ट सिस्टम:
अगर किसी क्लेम में गड़बड़ी या देरी होती है, तो सिस्टम खुद अलर्ट (सूचना) भेजेगा। इससे जिम्मेदार अधिकारियों पर जवाबदेही (accountability) बढ़ेगी। - फीडबैक और शिकायत निवारण:
मरीज अब सीधे पोर्टल या ऐप पर अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं और उसकी प्रगति (progress) ट्रैक कर सकते हैं। इससे अस्पतालों की जवाबदेही भी बढ़ेगी। - फर्जीवाड़े पर सख्ती:
नई व्यवस्था के तहत संदिग्ध क्लेम्स की जांच के लिए एक विशेष टीम बनाई गई है। अस्पतालों को भी समय-समय पर ऑडिट (audit) के दायरे में लाया जाएगा।
आमजन और कर्मचारियों को क्या होंगे फायदे?
- समय की बचत:
अब मरीजों को फॉर्म भरने, कागज जमा करने और ऑफिस के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं। सब कुछ ऑनलाइन और ट्रैक करने योग्य होगा। - भरोसेमंद इलाज:
मरीजों को पता रहेगा कि उनका क्लेम कहां तक पहुंचा है, किस अधिकारी के पास है और कब तक निपटेगा। इससे अनावश्यक देरी नहीं होगी। - मानसिक शांति:
जब सिस्टम पारदर्शी हो, तो मरीज और उनके परिवार को मानसिक राहत मिलती है। इलाज के दौरान फाइनेंशियल स्ट्रेस (आर्थिक तनाव) भी कम होगा। - अस्पतालों की जवाबदेही:
अस्पतालों को अब हर कदम पर अपनी प्रक्रिया रिकॉर्ड करनी होगी। इससे इलाज में लापरवाही या अनावश्यक खर्च की गुंजाइश कम होगी।
समाज में बदलाव की उम्मीद
राजस्थान जैसे बड़े राज्य में, जहां दूर-दराज के इलाकों में भी सरकारी कर्मचारी और उनके परिवार रहते हैं, उनके लिए पारदर्शिता और सुविधा का यह नया मॉडल उम्मीद की किरण है।
बीकानेर के एक सरकारी स्कूल टीचर, सुरेश शर्मा बताते हैं, “पहले इलाज के बाद महीनों तक क्लेम पास होने का इंतजार रहता था, कई बार तो ऑफिस के चक्कर काटने पड़ते थे। अब मोबाइल पर ही सबकुछ पता चल जाता है। यह सच में राहत देने वाला बदलाव है।”
हर नई व्यवस्था के साथ शुरुआती दिक्कतें आती हैं—टेक्नोलॉजी अपनाने में समय लगता है, कई वरिष्ठ कर्मचारियों को डिजिटल सिस्टम की आदत नहीं है। लेकिन सरकार ने इसके लिए हेल्पलाइन, ट्रेनिंग और गाइडेंस सेंटर भी शुरू किए हैं।
स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया, “हमारा मकसद है कि कोई भी कर्मचारी या पेंशनर जानकारी के अभाव में परेशान न हो। हर जिले में RGHS हेल्प डेस्क बनाई गई है।”
राजस्थान सरकार की यह पहल सिर्फ़ एक तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था में भरोसे और ईमानदारी की नई शुरुआत है। जब सिस्टम पारदर्शी हो, तो भ्रष्टाचार (corruption) और लापरवाही की गुंजाइश अपने आप कम हो जाती है।
आमजन को अब उम्मीद है कि इलाज के नाम पर होने वाली परेशानियाँ कम होंगी और सरकारी योजनाओं का असली लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचेगा। RGHS में पारदर्शिता की यह नई व्यवस्था आने वाले समय में पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकती है।















