राजस्थान के फलोदी जिले के भोजासर थाना क्षेत्र से गुरुवार (3 जुलाई) सुबह एक ऐसी खबर आई, जिसने पुलिस महकमे के साथ-साथ पूरे इलाके को हिलाकर रख दिया। भोजासर थाने में तैनात कांस्टेबल शैतान बिश्नोई तड़पता हुआ मिला। उनका शरीर मिट्टी से सना था, कपड़े अस्त-व्यस्त, और चेहरे पर दर्द के गहरे निशान। थाने में उनकी सरकारी गाड़ी जस की तस खड़ी मिली, जिससे मामला और भी उलझ गया है।
घटना का विवरण: सुबह की खामोशी में छुपा दर्द
कांस्टेबल शैतान बिश्नोई भोजासर थाने में तैनात थे। रोज की तरह वे शाम को ड्यूटी पर निकले, लेकिन देर रात तक घर नहीं लौटे। परिवार ने थाने में फोन किया, तो पता चला कि उनकी गाड़ी थाने में ही खड़ी है, लेकिन वे खुद वहां नहीं हैं।
सुबह गांव के कुछ किसान जब खेतों की तरफ गए, तो झाड़ियों के बीच एक व्यक्ति तड़पता मिला। पास जाकर देखा तो शरीर मिट्टी से सना, सांसें टूटती-सी, आंखों में दर्द और बेबसी।
किसानों ने तुरंत गांववालों और पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उन्हें अस्पताल पहुंचाया, लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई।
परिवार और विभाग में शोक की लहर
शैतान बिश्नोई के परिवार को जैसे ही खबर मिली, वे गहरे सदमे में हैं।
परिजन बार-बार यही सवाल कर रहे हैं—“आखिर ऐसा क्या हुआ कि हमारा बेटा, जो हमेशा हंसता-खेलता था, अचानक हमें छोड़ गया?”
पुलिस विभाग के साथी भी स्तब्ध हैं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “शैतान बिश्नोई कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार और मिलनसार जवान थे। उनकी मौत हम सबके लिए व्यक्तिगत क्षति है।”
शैतान बिश्नोई की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं
- अगर गाड़ी थाने में थी, तो वे खेतों तक कैसे पहुंचे?
- शरीर पर मिट्टी, कपड़ों की हालत और चेहरे के घाव—क्या यह किसी संघर्ष का नतीजा है?
- क्या यह कोई दुर्घटना (Accident) थी, या किसी ने उन्हें खेतों में ले जाकर मारा?
- आत्महत्या (Suicide) की संभावना भी जांच के दायरे में है, लेकिन मौके की परिस्थितियां इसे संदिग्ध बनाती हैं।
पुलिस ने शव को पोस्टमॉर्टम (Postmortem) के लिए भेज दिया है। एफएसएल (Forensic Science Lab) टीम ने घटनास्थल से मिट्टी, कपड़ों के नमूने और आसपास के सबूत इकट्ठा किए हैं। परिवार और थाने के साथियों से भी पूछताछ जारी है।
सामाजिक और मानसिक पहलू: पुलिसकर्मियों की अनदेखी समस्याएं
यह घटना सिर्फ एक मौत नहीं, बल्कि पुलिस महकमे में व्याप्त मानसिक दबाव, तनाव और सामाजिक चुनौतियों की भी कहानी है।
- पुलिसकर्मी चौबीसों घंटे ड्यूटी, सामाजिक दबाव, ट्रांसफर, परिवार से दूरी और कभी-कभी विभागीय राजनीति का सामना करते हैं।
- कई बार मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) की अनदेखी हो जाती है।
- विभाग में खुलकर अपनी परेशानी साझा करने का माहौल नहीं होता, जिससे समस्या और बढ़ जाती है।
पुलिस की जांच कई एंगल से चल रही है—
- क्या यह आत्महत्या (Suicide) का मामला है, या किसी साजिश (Conspiracy) की आशंका है?
- क्या शैतान बिश्नोई किसी व्यक्तिगत परेशानी, कर्ज, या विभागीय विवाद से जूझ रहे थे?
- क्या हाल ही में उनकी किसी से बहस या झगड़ा हुआ था?
- मोबाइल फोन, कॉल रिकॉर्ड और सोशल मीडिया चैट्स की भी जांच की जा रही है।
समाज और विभाग के लिए सबक
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि पुलिसकर्मी भी इंसान हैं—उनकी भी भावनाएं, समस्याएं और कमजोरियां होती हैं।
- विभाग को चाहिए कि समय-समय पर काउंसलिंग, मानसिक स्वास्थ्य जांच और सहायक कार्यक्रम चलाए।
- साथियों को एक-दूसरे की भावनाओं को समझना और मदद करना चाहिए।
- समाज को भी पुलिसवालों के प्रति संवेदनशीलता (Sensitivity) दिखानी चाहिए।
भोजासर थाना के कांस्टेबल शैतान बिश्नोई की संदिग्ध मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
पुलिस की जांच जारी है, परिवार और विभाग को न्याय की उम्मीद है।
लेकिन असली बदलाव तब आएगा, जब हम पुलिसकर्मियों की मानसिक और सामाजिक समस्याओं को गंभीरता से लेंगे।















